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संतुलित परिवार में पति-पत्नी की कुछ विशेषताएं

आपको याद होगा कि पिछले कुछ कार्यक्रमों में हमने विवाह के महत्व और उसके मानदंडों पर चर्चा की थी।

 

विवाह मानव जीवन के महत्वपूर्ण विषयों मे से एक है।  विवाह एक पवित्र बंधन हैं। विवाह परिवारिक और सामाजिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंधन है।  निःसन्देह, वे लोग जो विवाह करना चाहते हैं वे एक सफल जीवन के इच्छुक होते हैं।  उनकी इच्छा होती है कि उन्हें एक आदर्श जीवनसाथी मिले।  उदाहरण स्वरूप बसंत की अपनी कुछ विशेषताए होती हैं।  बसंत के मौसम में चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है।  इस मौसम में पेड-पौधों और वनस्पतियों को नया जीवन मिलता है।  इससे ज्ञात होता है कि जीवन में यदि उत्साह होगा तो प्रसन्नता भी मिलेगी।

एक संतुलित जीवन के लिए आवश्यक है कि उसमें कुछ परिवर्तन पाए जाएं।  एक प्रकार का जीवन व्यतीत करते हुए मनुष्य उकता जाता है।  जीवन में कार्य, विश्राम, परिश्रम, अध्ययन, व्यायाम, लोगों के साथ संपर्क और ईश्वर के साथ संपर्क के लिए समय निकालने से परिवर्तन आता है।  जीवन में इनमे सबका अपना अलग स्थान है।  सफल परिवार के सदस्य, सदैव ही सकारात्मक परिवर्नतों के लिए प्रयासरत रहते हैं।  इस प्रकार एक परिवार परिपूर्णता तक पहुंचता है।

 

पति और पत्नी दोनों को एक दूसरे के लिए आंतरिक प्रसन्नता का कारण होना चाहिए।  उन्हें हर प्रकार की अति से बचना चाहिए।  एक संतुलित परिवार में पति और पत्नी दोनो ही एक-दूसरे की आंतरिक विशेषताओं में विकास और प्रगति का कारण बनते हैं।  इसमें वे परस्पर सहायता करते हैं।  इस प्रकार की सोच परिवार को हर प्रकार के पतन से बचाती है।  एसी सोच रखने वाले पति और पत्नी, सामने वाले पक्ष में पाई जाने वाली कमियों के बावजूद उसे महत्व देते हैं।  यह लोग उस कमी को दूर करने के लिए अपनी क्षमता के अनुरूप प्रयास भी करते रहते हैं।  ऐसा प्रतिक्रिया वास्तव में पति-पत्नी के बीच पाए जाने वाले प्रेम के कारण होता है।

 

पति-पत्नी द्वारा एक दूसरे के सम्मान करने की स्थिति में आध्यात्मिक और भौतिक विकास की भूमिका प्रशस्त होती है।  इस्लामी शिक्षाओं में सामाजिक जीवन में लोगों के सम्मान को विशेष महत्व प्राप्त है।  इस्लामी शिक्षाओं में दूसरों के सम्मान पर बहुत बल दिया गया है।  इस विषय को वैवाहिक जीवन में और अधिक महत्व प्राप्त है।  इस्लाम कहता है कि पति और पत्नी को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे एक-दूसरे के परिधान समान हैं।  इसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार से परिधान शरीर की कमियों को दूसरों से छिपाते हैं उसी प्रकार से पति-पत्नी को भी सामने वाले पक्ष की बुराइयों और कमियों को छिपाना चाहिए।  यदि इसके विपरीत हो और पति-पत्नी एक दूसरे की बुराई को उजागर करने लगें या अपनी कुछ विशेषताओं पर घमण्ड करें और दूसरे को नीचा दिखाने लगें तो एसी स्थिति में पारिवारिक वातावरण सौहार्दपूर्ण न रहकर द्वेषपूर्व हो जाएगा।  इस प्रकार के परिवार में मनमुटाव उत्पन्न हो जाता है।  इसलिए पति और पत्नी दोनों को सहनशील होना चाहिए।

 

निश्चित रूप से आपने भी अपने जीवन में यह देखा या सुना होगा कि कुछ पति-पत्नी, अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को अनदेखा करते हुए अपने जीवनसाथी की प्रगति और उसके विकास के लिए प्रयास करते हैं।  इस प्रकार के लोग अपने जीवन साथी की सफलता के मार्ग में हर प्रकार से बलिदान देने को तैयार रहते हैं।  एसे लोगों को अपने जीवनसाथी का सहायक और हितैषी का जाता है।  वह एसा सहायक है जो अपने जीवन साथी के लिए सीढ़ी के समान है जिससे वह ऊपर की ओर जाता है।  इस प्रकार से नैतिकता की दृष्टि से अपने एसे जीवनसाथी की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है और उसका बहुत अच्छे ढंग से आभार व्यक्त करना चाहिए।  हम किसी से कम नहीं हैं, हम क्यों किसी को सहन करें, या हम क्यों झुकें यह ग़लत सोच है।  सफल वैवाहिक जीवन में कभी किसी को सहना तो कभी किसी को झुकना पड़ता ही है । यह सब सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है।  जिस प्रकार से स्त्री के लिए पति को पूजनीय बताया गया है ठीक उसी तरह पुरुष से भी कहा गया है कि वह पत्नी का सम्मान करे।

 

इस्लाम की दृष्टि में संतुलित वैवाहिक जीवन की एक अन्य विशेषता एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक लगाव रखना हैं।  पारिवारिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि वैवाहिक जीवन की विफलता का एक कारक, भावनाओं को उचित ढंग से प्रस्तुत करने की शैली का न जानना है।  देखा यह जाता है कि विवाह के आरंभिक दिनों में पति और पत्नी के बीच जो प्रेम पाया जाता है वह समय व्यतीत होने के साथ साथ कम होने लगता है।  जब इसमें कमी आती है तो फिर शिकायतों का दौर आरंभ होता है।  अब पति और पत्नी सोचने लगते हैं कि क्यों उनके जीवन में नीरसता आती जा रही है और पहले जैसी बात अब नहीं रही है।  हालांकि वे इस बात को भूल जाते हैं कि जिस प्रकार से जीवन के आरंभिक काल में प्रेम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से उसकी आवश्यकता जीवन को आगे बढ़ाने में भी होती है।  इस प्रकार पता चलता है कि वैवाहिक जीवन में भावनाओं को विशेष महत्व हासिल है।

मनुष्य का हृदय मानवीय भावनाओं का स्रोत हैं।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नकारात्मक भावनाओं को मन में आने नहीं देना चाहिए।  एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक भावना रखने से भी बहुत सी समस्याएं अस्तित्व में आती हैं।  यह विषय केवल सामाजिक जीवन तक ही सीमित नहीं है बल्कि वैवाहिक जीवन में भी इसके बुरे परिणाम सामने आने लगते हैं।  यदि दोनों अर्थात पति और पत्नी एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक विचार रखते हों तो उनके दैनिक जीवन में कटुताएं आ जाएंगी।  भावनाओं को व्यक्त करने करने में शब्दों की बहुत भूमिका होती है।  इनकी अभिव्यक्ति में शब्दों का चयन पर ध्यान दिया जाए।  एसा भी होता है कि बहुत से लोगों के मन में अपने जीवन साथी के लिए बहुत प्रेम होता है किंतु वे इसको व्यक्त नहीं कर पाते।  एसे में लगता है कि उन्हें अपने जीवन साथी से कोई प्रेम नहीं है जबकि होता इसके विपरीत है।  इस स्थिति में वैवाहिक जीवन में तनाव उत्पन्न होने लगता है।  पैग़म्बरे इस्लाम ने पति-पत्नी के संबन्धों को सुदृढ़ बनाने और परिवार के वातावरण को मैत्रीपूर्ण बनाए रखने की बहुत सिफ़ारिश की है।  इस बारे में उनके बहुत से कथन पाए जाते हैं।

   

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